हक़ीक़त-ए-हाल
~हक़ीक़त-ए-हाल~ यूं अजीब तरह से लोग बौखला रहे हैं अलविदा कहने में होंठ कपकपा रहे हैं जिंदा रहते जो ना मिले उनसे गिला नहीं गिला है जो मौत पर मजलिस लगा रहे हैं मेरी क़ब्र पर तुम नीम के पौधे लगाना रिश्ते- नातों की मिठास अब कड़वा रहे हैं दर्द सारा ज़ेहन का नदारद हो जाता गर वो कहते रुको जरा हम आ रहे हैं दवाइयां बेअसर हैं बगैर दुआओं के लेकिन अब तो फरिश्ते भी ख़ौफ़ खा रहे हैं सहारे की लाठियां सारी टूट चुकी हैं मगर सियासत की लाठियां बरसा रहे हैं खेल ख़ूब खेला खिलौना समझकर सबको अब अपने ही बेमौत मारे जा रहे हैं संजीव शाकिर ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK- http://www.facebook.com/sanjeevshaakir YOUTUBE- https://youtu.be/vLT-KbE83os ....................................................................✍️