क्यूँ.....?
हर बार "क्यूँ" का जवाब,आख़िर "क्यूँ" नहीं होता
बेशक क़रार है मुझे,पर दिल को सुकूँ नहीं होता
मंडराते रहते हैं जो बादल,चांद की चाहत में
टूटकर,यूं,जमीं पर गिरना महज़ जुनूँ नहीं होता
हर घड़ी ख़तरे में रहता है मेरा रेत का महल
लहरें ढहा जाती जो साहिल रूबरू नहीं होता
अपना रिश्ता भी वैसा है,जो है शाख़ का शजर से
वो खड़े रहें हम कट जाए,हां बस यूं नहीं होता
ख़ैर भूलें सारी बातें,फ़क़त इतना याद रखें
गर ज़ख्म अपने ही लगाएं फिर वो रफ़ू नहीं होता
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संजीव शाकिर
केनरा बैंक, छपरा
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संजीव शाकिर |
Aapki Sabhi rachayain Bahut ho behtareen hain
ReplyDeleteशुक्रिया
Delete🥺emotional for me
ReplyDeleteJust Feel...😀
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