'स्त्री'

                     'स्त्री'
                शाश्वत सत्य


तुम इस जगत का मान हो
संपूर्ण सृष्टि का सम्मान हो,
तुम हो दृष्टांत हर क्षेत्र में
तुम अभिव्यक्ति हो, अभिमान हो।

तुम मेरा संसार हो
तुम ही मेरा घर द्वार हो,
तुम से है, अस्तित्व मेरा
तुम प्यार हो, परिवार हो।

तुम करुणा की जननी हो
तुम हो ममता की मूरत,
हर भाव तुम्हारा अगोचर है
प्रत्यक्ष के परोक्ष में,
छिपी है ऐसी सूरत।
अनदेखा अंजाना कितना भी कर ले कोई,
तुम दिल पर दस्तक देती हो
बनकर एक जरूरत।।

बहन बनकर तुम सिखाती हो आचरण,
कौन विसर सकता है जीवन का वो चरण।
हमदम बनकर जब घर में करती हो आगमन,
बच्चे-बड़े-बूढ़े सब होते हैं मगन।।

तुम मां हो तुम दुआ हो,
उम्र कितनी भी हो तुम्हारी
हर दिल में तुम जवां हो।
नन्ही सी कली तुम गोद में पली
उड़ती तुम गगन में जैसे कोई हवा हो।।
कानों से जो दिल में उतरती
तुम वो तोतली जुबां हो।
तुम हो जीवन की उपलब्धि
तुम माहौल खुशनुमां हो।।

संजीव शाकिर
केनरा बैंक, तेलपा छपरा
संजीव
संजीव शाकिर


Comments

  1. Really your words made the environment " Khushnuma"👏👏

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  2. हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया 🙏

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  3. ख़ूबसूरत पंतिया

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  4. आपके स्नेह के लिए धन्यवाद 🙏

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  5. नारी सम्मान पर अच्छी कविता

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  6. बहुत ही अच्छी बात लिखी है। शानदार

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  7. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,l🙏🏻🙏🏻💐💐

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  8. अती सुन्दर सर
    राम जी के चरन मे
    रमगाढ़ा महाराजगंज

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SANJEEV SHAAKIR

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