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निजीकरण-एक मीठा जहर.....

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हूं............. तो शुरू करें निजीकरण, एक मीठा जहर.....✍ बात कल दोपहर तकरीबन 12:00 बजे की है जब मैं अपनी शाखा में बैठा अपने कार्य में मशगूल था तभी कालाकोट धारण किए हुए गले में सफेद पट्टी लगाए हुए एक वकील साहब (जो कि मेरे घनिष्ठ मित्र भी है) ने अचानक से आवाज लगाई.... क्या सर निजी करण के चलते इतनी तल्लीनता है या फिर कुछ और कारण है ? कानों में आवाज पड़ते ही मैंने तुरंत कंप्यूटर से ध्यान हटाकर आइए-आइए वकील साहब का संबोधन करते हुए उन्हें तशरीफ़ रखने को कहा तत्पश्चात उनके अभिवादन में तुरंत ही अपने एक सहकर्मी से चाय लाने के लिए निवेदन किया । सामने रखी कुर्सी पर बैठते ही वकील साहब ने बड़ी उत्सुकता से कटाक्ष भरे लहजे में कहा... अरे सर, तेजस ट्रेन का नाम सुने कि नहीं ? बड़ी बढ़िया ट्रेन है सुनने में आया है कि एकदम राजशाही व्यवस्था है, हां लेकिन प्राइवेट है, अब सरकारी का क्या कहें आप तो जानते ही हैं, सोच रहे हैं अब अगली बार इसी में यात्रा करेंगे। इतनी देर में मुझे समझ आ चुका था कि एक सरकारी मुलाजिम के प्रत्यक्ष सरकारी कुर्सी पर बैठकर निजी करण का दलील देते हुए राष्ट्रीयकरण का चीर हर