मजदूर~गाथा
दू"मज - र"गाथाबू
खुद के लहू से सींच कर
जो सड़के बनाई थी हमने।अपने घरों से खींच कर
ला खड़ा किया वहीं तुमने।
रंग-रूप चकाचौंध शहर काहाथी दांत के जैसा है।जहां जिंदे को रोटी नसीब,नाऔर लाश हुए,तो पैसा है।
लाखों लोग जो बेघर हैं,
राहों में हैं भटक रहे।
शासन और प्रशासन की
आंखों में हैं खटक रहे।
राष्ट्र का गौरव इनसे ही है,रहेगा, इन्हीं के कर्मों से।नेता के राज और उनकी नीति नेसौगात दिया इन्हें जुर्मो से।
रहे स्मरण, इन रणबांकुरे ने
कोरोना को भी मात दिया।
भूख प्यास और घोर गरीबी ने
हाय! चौतरफा कुघात किया।
अब ना कोई उम्मीद है,अब ना किसी से आस है।तुम जलाओ दीपक घरों मेंयहां जलती हमारी सांस है।
पैर के छालों ने जो नापा
वह दूरी नहीं मजबूरी है।
गांव की गलियां गूंज रही हैं
तेरा जिंदा रहना जरूरी है।
दाएं कंधे पर बेटा बैठाबायें पर बेटी का भार है।अब हर पग, मां खून थूकतीबीवी को तेज बुखार है।
इस चिलमिलाती धूप को
मेरा नंगा बदन ही काफी है।
सैकड़ों योजन चलकर भी,
मेरे बच्चे में जान बाकी है।
ये मर गया तो, तड़पूंगा मैंक्योंकि मेरा तो कुछ जाता है।हिंदुस्तान समूचा झुलस रहाक्या तुम्हें नजर नहीं आता है।
अब ना रुके हैं, ना ही रुकेंगे
जब तक जिस्म-ओ-जान है।
जो ना टूटा है, ना टूटेगा,
वह मजदूरों का अभिमान है।
तीन दिनों की सूखी रोटीधुलकर, भूख मिटाये जो।समक्ष, दुनिया क्या टिकेगीसामने कोई आए तो।
मील के पत्थर मित्र बने हैं।
ना जाने कैसा अद्भुत नाता है।
जब भी मिलते खुशियां देते
जैसे गांव, पास आ जाता है।
परछाइयां बनी सखी सहेली,पल-पल, पग-पग साथ चली।जब-जब कड़क धूप थी सर परतब-तब वह रही साथ खड़ी।
पसीना हमने बहुत बहाया
अब खून हम बनायेंगें।
ऐ सड़क, तू साक्ष्य बनेगी
तुझे रक्त से सीचते जाएंगे।
बीवी, बच्चे और बूढ़े मां बापछोड़, जो भी शहर को आता है।शर्म करो, गर बाकी है कुछवह मजदूर नहीं निर्माता है।
रंजिश कैसी ये कैसी साजिश
मेरा तो किसी से बैर नहीं।
खैर, किया बहुत तेरे खैर के खातिर
पर मेरा अब, कोई खैर नहीं।
पुष्प वर्षा भले हुई हो,हमने तो उपल वर्षा झेली।खेल-खिलौने दिये जिस दुनिया को,वही हमारे संग खेली।
राहत पैकेज का मरहम नहीं जी
ये नमक, मिर्च का घोल है।
बौनी बन बैठी हैं सरकारें
यही भौतिक भूगोल है।
अंधा राजा और गूंगी प्रजाक्या सब सच में अनजान हैं?थाली पीट कर शोर मचातेमेरा भारत महान है।
अब चलेंगे रात-दिन हम
देखते हैं रोकेगा कौन।
ये मूक सरकारें क्या बोलेंगी
जब मेरा ही, खुदा है मौन।
स्वच्छ भारत का तिलक किया है,एड़ी के लाल रंग से।जैसे नभ की छाती छल्ली हो गईएक पर कटे विहंग से।
दिखता नहीं क्या तुम्हें वहां से?
आसमान में बैठे हो।
यहां धरा पर कोख फट गई।
खुद को मसीहा कहते हो।
उठो गगन अब नीचे आओदेखो मेरी पीड़ा को।गरीबी संग जो खेली जा रहीसत्ताधीश की क्रीड़ा को।
बहुत हुआ यह आंख मिचोली
अब तो कुछ उद्धार करो।
हे ईश्वर! ब्रह्मांड रचयिता,
अब तुम ही बेड़ा पार करो।
या तुम भी इनके जैसे होजो खुली आंख से सोते हैं।भैया, बाबू कर वोट मांगते,पर कभी ना अपने होते हैं।
दर-दर पर दुत्कार मिला है
दसों, दिशाएं घूम कर।
गोद में गिरते ही मोक्ष दे दिया
धरती मां ने मांथा चूमकर।
संजीव वर्मा "शाकिर"
केनरा बैंक, बिहार!
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SANJEEV SHAAKIR |
आप एक कुशल व्यवहार के धनी व्यक्ति हैं ये बात मैं जानता था लेकिन आज एक कवि के रूप में देखा जाना आपकी पक्तियां पढ़कर, बहुत ही उम्दा और अटूट सत्य भी हैं मजदूर वर्ग की गाथा कविता के रूप में। अद्धभुत। सादर धन्यवाद।
ReplyDeleteयह आप की महानता है और देखने का नजरिया।
Deleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका
Very nice poem..... great sir .....
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteTrue sir. Nice poem
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सर
DeleteManmohak, heart touching.
ReplyDeleteThanks......🙏
Deleteसर आपका कबिता दिल को छू लिया ,सर आप तो नहले पे दहला निकले
ReplyDeleteऐसा क्या ?
Deleteशुक्रिया, आपके समय के लिए।
सरलता से इतनी सहज भाषा में वो सब दिखा दिया है जो पदासीन नहीं देखना चाहते हैं।
ReplyDeleteस्वर हमेशा उठाते रहिये । जीवित व्यक्ति सदैव बोलता है। साधुवाद।
शुक्रिया भाई जी
DeleteBahut hi shaandar kavita
ReplyDeleteआपका शुक्रिया
Deleteबहुत संदर। प्रतिभा के धनी है आप..
ReplyDeleteGreat sanjeev Bhai....keep it up 👍
ReplyDeleteशुक्रिया भाई जी
Deleteवाह क्या खूब लिखा है आपने एकदम लाजवाब कोई जवाब नहीं भैया जी
ReplyDelete🙏🙏आभार
Deleteमौज में रहने वाले अनजान क्या खोया क्या पाया है,
ReplyDeleteवीर प्रहरियों के अपने जाने उन्होंने क्या गंवाया है।
संजीव भाई आपकी हर एक पंक्ति दिल को छू लेती है।🙏
वाह भाई जी
DeleteVery nice composition. Amazing poem . Now you have added one more feather in your cap.
ReplyDelete🙏 Blessed
Deleteबेहतरीन भाई
ReplyDeleteWell done Sanjeev...I think u must start serious writing
ReplyDeleteThanks for motivation and support
DeleteDil छू लिया आपने
ReplyDelete🙏
DeleteYou have said truth
ReplyDelete🙏
DeleteVery good bhai ji
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
DeleteBahut Achcha bhai ji
ReplyDeleteशुक्रिया
Delete🙏🙏
ReplyDelete🙏
Deleteमजदूर दिवस की हार्दिक बधाई सर। हमेशा की तरह आज भी उत्तम कविता।
ReplyDeleteVery empathetic poem...nice Shaakir Shahb.
ReplyDeleteNice 👍
ReplyDeleteVery nice poem brother 👍👍
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन है आपकी कविता, आपकी लेखनी में बहुत दम है भाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएं 💐💐
Nice poem bro 😍
ReplyDeleteBahut hi badhiya... Maarmik aur Satya... Ek aur Kavita se ek aur kahani ko aur jeevit kiya hai.. utkrishth kritya
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त
DeleteVery nice and meaningful words
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