हक़ीक़त-ए-हाल
यूं अजीब तरह से लोग बौखला रहे हैं
अलविदा कहने में होंठ कपकपा रहे हैं
जिंदा रहते जो ना मिले उनसे गिला नहीं
गिला है जो मौत पर मजलिस लगा रहे हैं
मेरी क़ब्र पर तुम नीम के पौधे लगाना
रिश्ते- नातों की मिठास अब कड़वा रहे हैं
दर्द सारा ज़ेहन का नदारद हो जाता
गर वो कहते रुको जरा हम आ रहे हैं
दवाइयां बेअसर हैं बगैर दुआओं के
लेकिन अब तो फरिश्ते भी ख़ौफ़ खा रहे हैं
सहारे की लाठियां सारी टूट चुकी हैं
मगर सियासत की लाठियां बरसा रहे हैं
खेल ख़ूब खेला खिलौना समझकर सबको
अब अपने ही बेमौत मारे जा रहे हैं
संजीव शाकिर
....................................................................✍️
INSTAGRAM-
http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir
FACEBOOK-
http://www.facebook.com/sanjeevshaakir
YOUTUBE-
....................................................................✍️
बहुत खूब
ReplyDelete🙏
Deleteबहुत खूब
ReplyDelete🙏
Deleteबहुत खूब
ReplyDelete🙏
Deleteवाक़ई में वर्त्तमान परिस्थितियों का हक़ीक़त बयां किया गया है।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ।
वक्त के लिए शुक्रिया
DeleteBehtreen , loudable
ReplyDelete🙏
DeleteBilkul sahi
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteShukriya Bhai G
Deleteबहुत अच्छा भाई जी
ReplyDeleteDhanybad Bhai G
Delete