अंदाज़-ए-बयाँ
अंदाज़-ए-बयाँ सब कुछ लगा कर दाँव पर, हम ऐसे चाल हार गए अब क्या बरछी क्या कटार, वो जुबां से ही मार गए जीतने की ख़्वाहिश तो थी ही नहीं, कभी भी उनसे रंजिशें ग़ैरों से की और अपने सारे यार गए इक फर्क है मेरे और उनके अंदाज़-ए-बयाँ में वो अब भी इक राज हैं, मेरे सारे असरार गए तूफानों ने लहरों से मिल कर ऐसी साज़िश रची कश्ती तिरे ख़ैर में ना जाने कितने पतवार गए अमूमन, तमाम शब मैं इसी क़ैफ़ियत में रहता हूं बेज़ार हो क्यों? मिरे किस बात पर इतना ख़ार गए तुम्हारा यूं हौले से रुख़सत हो जाना जायज़ है तुम्हें ख़बर भी है, यहां मेरे कितने इतवार गए ................................................................................................... संजीव शाकिर केनरा बैंक, छपरा ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK- http://www.facebook.com/sanjeevshaakir YOUTUBE- https://youtu.be/vLT-KbE83os ....................................................................✍️