सियासत
सियासी महकमे से उड़ती ख़बर है जवां महफ़िलो पर अब पैनी नज़र है यूं तो मजलिस लगी वोट के नाम पर अब तो मुलाकात भी क़तई ज़हर है गुफ्तगू जो भी थी सरेआम हो गई अब कहां,किसे,कुछ भी खोने का डर है गांव की गलियां तक रफू हो रही थी यहां चौराहे से घूरता शहर है कौन करे उंगली सियासतदानों को हैं जो काबिल उनका अपना घर है इब्तिदा-ए-इश्क़ की इंतिहा हो गई जो ख़ुद के ना हुए मेरे हमसफ़र हैं गरेबाँ झाँकूं जरा भी हुकूमत का कालिख ढकती एक सफेद चादर है हैरत में है "माचिस" देखकर शहर को जब जुबाँ से निकलती आग की लहर है लाचार लहजे ने लाजवाब कर दिया वादे अच्छे थे फिर यह कैसा कहर हैं वो वहां बैठे तुम्हें देख रहे "शाकिर" अंजान बने रहना दस्तूर-ए-दहर है …...................................................🖋️ संजीव शाकिर केनरा बैंक, छपरा …...................................................🖋️ ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK- http://www.facebook.com/sanjeevshaakir YOUTUBE- https://youtu.b