अंदाज-ए-गुफ़्तगू
हेलो, सुनो ज़रा, रुको, यहीं कुछ बात करते हैं
पहले तुम मुस्कुराओ, फिर हम शुरुआत करते हैं
तेरी पलकों को काली लटों ने घेर रखा है
उंगलियों से ही सही, इसे आजाद करते हैं
आओ, कुछ दूर, आहिस्ता-आहिस्ता साथ चलें
बिन बादल, शहर-ए-दिल में बरसात करते हैं
तू मेरा जिगर ना सही, हां मगर, जिगरी तो है
रहे आबाद हर पल, यही फरियाद करते हैं
वो तुमने उस दिन जो धीरे से "ना" कह दिया
बंद आंखों से ही तुझे, अब हम याद करते हैं
हवा चले, दिया जले, ये सब मुमकिन नहीं लेकिन
कमाल है, यह जादू आप साथ-साथ करते हैं
तू मेरे साथ है, अभी तलक, अपने मतलब से
महफिल-ए-वफा में लोग, यही बात करते हैं
तुम्हें कब फर्क पड़ता है, जिए हम जैसे भी
मिल्कियत हो ना हो, दिल से खैरात करते हैं
नौकरी-चाकरी सब, फकत जीने का ज़रिया है
हो, जो इश्क में मुनाफा, तो मुसावात करते हैं
मेरे मसरूफियत को,खैर,तुम क्या जानो'जानी'
हाथ उठाकर सज़दे में, मुलाकात करते हैं
सुनहरे ख्वाब में, खुली आंखों से खो जाते हो
'शाकिर' कुछ बात है, चलो मालूमात करते हैं
संजीव शाकिर
केनरा बैंक, तेलपा छपरा।।
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संजीव शाक़िर |
Lajab bhiya ji
ReplyDeleteशुक्रिया भाईं
Deleteवाह क्या बात है बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDelete👌
ReplyDelete🙏
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