तुम्हें अच्छा लगेगा !
बेवजह तुम पर मरते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
तेरी तारीफ के कसीदे, मैं पढूं ना पढूं
सुकूँ से कलाम पढ़ते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
जज़्बात ख़यालात सवालात, अब रहने भी दें
बिन बयां सब समझते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
वो रुमाल जो अपने सर की, तकिया थी कभी
उसकी खुशबू महकते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
मयस्सर हो जहां से जो, उतना ही सिर्फ क्यों?
अब हक के लिए लड़ते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
मैं तुम या फिर हम, जीत लेंगे इस दुनिया को
क्यों ना साथ में निकलते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
तीरगी-ए-शब में खूब चमके, इश्क के जुगनू
शाम-ओ-सहर चमकते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
हाल-ए-दिल दफन है दिल में, ना जाने कब से
आंखों से बयां करते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
गली के नुक्कड़ से बहुत हुई, हुस्न की टकटकी
"आ" चौराहे पर मिलते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
तुम हो इंतजार में जिसके, वो शाकिर तो नहीं
तुम रुको हम चलते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा
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संजीव शाकिर
केनरा बैंक, तेलपा छपरा
संजीव शाकिर |
Bahut khoob
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteदिल से कह सकता हूँ सुक्रिया जनाव इस सुंदर रचना के लिए।
ReplyDeleteYe apki lekhni bhai Hr kisi ko pdh kr ............. Achha lgega .
ReplyDeleteShandar jbrdast .
🙏
DeleteAapki tarif me kia kahu ....sab k samne padh diya sab ko accha laga
ReplyDeleteआपकी मोहब्बतें दुआओं जैसी असर करती है इतना काफी है 🙏
DeleteHme acha laga.. ☺☺
ReplyDelete🙏
DeleteNice..1
ReplyDeleteBehtareen
ReplyDeleteNayaab
ReplyDeleteLajawab
ReplyDeleteSuper se v uper👌👌👌👌
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