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तो मोहब्बत है !

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तो मोहब्बत है ! जुबां को कहना पड़े फिर इश्क़ कैसा ? आंखों से बयां हो, तो मोहब्बत है ! ग़ुरबत में सजदे लाज़िमी हैं मगर  उसकी भी दुआ हो, तो मोहब्बत है ! दार के दरवाजों से लेकर दरीचों तक सब, खुले के खुले रहते हैं। उसके दर पे दस्तक देने से भी,  वो गर मुझसे जुदा हो, तो मोहब्बत है ! समंदर के थपेड़ों ने डुबोई हैं, ना जाने, कितनी ही कश्तियां, फिर भी अब किसी कश्ती का दिल  बलखाती लहरों पे ही फ़िदा हो, तो मोहब्बत है ! जमीन पर टूट कर बिखरते हैं शाख़ों से पत्ते, आंधियों के चलने से। मगर मुरझायी कलियाँ, जब हवा के झोंकों से जवां हो, तो मोहब्बत है ! मेरी तक़लीफों को भी, कोई तक़सीम करे मगर, यह मुमकिन ही कहां लिए फिरते हैं, हंसी होंठो पे जो,  दिल उनका दुखा हो, तो मोहब्बत है ! संजीव शाकिर ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   YOUTUBE- https://youtu.be/vLT-KbE83os ....................................................................✍️

रक़ीब

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उससे मिलने को तो, वो, उसके घर जाती है मैं, गली से भी जो गुज़रू, तो मुक़र जाती है कुछ तो बेहतर होगा, यक़ीनन उसमें, मुझसे मैं तुझ पर मरता हूँ, तू, उसपे मर जाती है ख़्वाब में भी कभी उसे, यूं, बेरिदा नहीं किया है नज़ाकत तेरी, जो, दिल में, उतर जाती है मेरी,  तक़दीर में,  लिखा है,  राएगाँ होना पर "आह" जो निकले तिरी, आंखे भर जाती हैं तू चाहे मुक़र्रर कर, कोई भी ताज़ीर, मुझे   मेरे हम्द में, हर बार तू, सज-संवर जाती है तुझे अब और जानने की, ख्वाहिश ही नहीं है भुलाऊं कैसे, इस ख़ौफ़ से, रूह डर जाती है मेरे जनाजे के सफ़र से, है, क्या फ़रक उसे जैसे वक़्त गुज़रता है, वो भी, गुज़र जाती है यूं छोड़ कर उसे, वापस आने से पहले, मैं खड़ा रहता हूं वहीं, जहां तक, नज़र जाती है किसी ग़ैर से गुफ़्तगू तिरी, जो देख ले शाकिर रात की चढ़ी, एक झटके में, उतर जाती है  ................................................................................ बेरिदा = घूंघट के बिना राएगाँ = बर्बाद ताज़ीर = सज़ा हम्द = ख़ुदा की तारीफ मुकर्रर करना = तय कर देना, सुना देना . ....................................................................

जज़्बात

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तड़प बेशक उठती है, शाम को, तेरे घर जाने के बाद अब हाथ हिलाकर क्या होगा, यूं रेल गुजर जाने के बाद यक़ीनन मेरे सिवा और भी हैं, तुम्हारे चाहने वाले अंजुमन-ए-आरज़ू है कि, लौट आना, मगर जाने के बाद क्या कहा, अब नहीं मिलोगे, कोई फर्क नहीं पड़ता तुमको  चल झूठी, आओगी तुम, क़ब्र पर, मेरे मर जाने के बाद परवाह है, उनकी ही हमें, जो ख़ुद ग़ैरों में मशग़ूल हैं महफ़िलों में, तन्हा-तन्हा हैं, मुझसे बिछड़कर जाने के बाद मेरे ख्वाबों की दुनिया न जाने कब उसे झूठी लग गई ऐतबार होगा, बेशक उन्हें, इनके बिखर जाने के बाद तय नहीं हो पाता सफ़र, अमूमन, दो पलकों के दरमियान क्या ख़ाक, मंज़िल मिलेगी अब, पटरी से उतर जाने के बाद क्यों दिल नहीं लगता, ज़रा भी, तू ज़रा सा, मुंह जो मोड़ ले दुनियां दफ़न कर चलता बनूं, दिल करे, दफ्तर जाने के बाद संजीव शाकिर केनरा बैंक, तेलपा छपरा।। ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   ....................................................................✍️ संजीव शाकिर

बैंकवा में का बा.....

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का बा... बैंकवा में का बा... मेहरारू पंजाब में बाड़े  लड़का पढ़त बा दिल्ली मा  हम ससुरा रांची में बानी  का रखल बा जिनगी मा  ई भागदौड़ धूपाधापी  जिव के बड़का जंजाल भइलबा जन्मभूमि बिहार रहिल,  जिंदगी ससुरा बंगाल भइलबा का बा...इहवां... दुई रोटी के चक्कर में  भारत भ्रमण पर निकलल बानी  जमा निकासी लोन सोन के  चक्रव्यूह में जकड़ल बानी  बीबी, बच्चा, गांव, देश  छोड़ छाड़ पगलायल बानी  सरकारी नौकरी के लाने बैंकवा में आयल बानी ना तो बैंकवा में का बा का बा हो, रउवा तो तीसन साल से बानी,  कुछ मीलल... का ट्रांसफर... उ तो मिलबे करी, और कुछ ना मिलल,  आंय, ना मिलल... मिलबो ना करी पासबुक, डी-डी, एफडी छपतय छपतय मरजाईब हम   हे चाचा,ले जा हो, केकर है,  गला फार चिल्लाईब हम  येतनव पे जब ना सुननी  तब धीरे धीरे बौराईब हम  ऊ दिन बबुआ दूर नईखे  जब फोटू में टग जाईब हम   रख लिहा "दू" मिनट के मौन फिर...   राम नाम सत्य है... लॉगिन डे, महा लॉगिन डे  कौनव ना कौनव दिन बा रोज बुड़बक बनइके पॉलिसी चिपकावा  अउर का तू करबा दोस  एसआईपी जीवन बीमा कै  कोर बैंकिंग से टक्कर बा जमा-निकासी में का रखल बा  इहां फौरन ट्रिप के

क्यूँ.....?

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हर बार "क्यूँ" का जवाब,आख़िर "क्यूँ" नहीं होता  बेशक क़रार है मुझे,पर दिल को सुकूँ नहीं होता मंडराते रहते हैं जो बादल,चांद की चाहत में  टूटकर,यूं,जमीं पर गिरना महज़ जुनूँ नहीं होता  हर घड़ी ख़तरे में रहता है मेरा रेत का महल  लहरें ढहा जाती जो साहिल रूबरू नहीं होता   अपना रिश्ता भी वैसा है,जो है शाख़ का शजर से वो खड़े रहें हम कट जाए,हां बस यूं नहीं होता ख़ैर भूलें सारी बातें,फ़क़त इतना याद रखें  गर ज़ख्म अपने ही लगाएं फिर वो रफ़ू नहीं होता …...................................................🖋️ संजीव शाकिर केनरा बैंक, छपरा …...................................................🖋️ ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   YOUTUBE- https://youtu.be/2QM595mwscI ....................................................................✍️ संजीव शाकिर                                                         

हाल-चाल ?

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परवाह कब थी उसे जो मेरा हाल-चाल पूछती और कुछ नहीं तो सीने में जलता मशाल पूछती मेरी फ़िक्रमंदी से तो उसकी बेफिक्री बेहतर जो फुर्सत होती उसे तो बेशक बेमिसाल पूछती और सुनाइए कैसे हैं? खैरियत! सब पूछते हैं ये गवारा नहीं था,तो कम से कम इंतकाल पूछती ख़ुमारी में भी शुमार था,यूं बेहिसाब जिक्र तेरा वो भूल गई होगी,वरना,ब-ख़ुदा कमाल पूछती यूं तो नहीं मनाती "दिवाली" बारूद जलाकर वो हां मगर,गोरे गाल पर लगे,लाल गुलाल पूछती …...................................................🖋️ संजीव शाकिर केनरा बैंक, छपरा …...................................................🖋️ ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   YOUTUBE- https://youtu.be/2QM595mwscI ....................................................................✍️ संजीव शाकिर

सियासत

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सियासी महकमे से उड़ती ख़बर है  जवां महफ़िलो पर अब पैनी नज़र है  यूं तो मजलिस लगी वोट के नाम पर  अब तो मुलाकात भी क़तई ज़हर है  गुफ्तगू  जो  भी  थी  सरेआम हो गई अब कहां,किसे,कुछ भी खोने का डर है  गांव की गलियां तक रफू हो रही थी  यहां  चौराहे  से  घूरता  शहर  है कौन करे उंगली सियासतदानों को हैं जो काबिल उनका अपना घर है  इब्तिदा-ए-इश्क़ की इंतिहा हो गई जो ख़ुद के ना हुए मेरे हमसफ़र हैं गरेबाँ झाँकूं जरा भी हुकूमत का  कालिख ढकती एक सफेद चादर है  हैरत में है "माचिस" देखकर शहर को जब जुबाँ से निकलती आग की लहर है  लाचार लहजे ने लाजवाब कर दिया वादे अच्छे थे फिर यह कैसा कहर हैं वो वहां बैठे तुम्हें देख रहे "शाकिर" अंजान बने रहना दस्तूर-ए-दहर है …...................................................🖋️ संजीव शाकिर केनरा बैंक, छपरा …...................................................🖋️ ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   YOUTUBE- https://youtu.b

हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म.......

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वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म....... .🤔🤫🤭 दुनिया की चाहे लगी हो वाट हर शय की अपनी खड़ी हो खाट तकलीफों का अंबार है तो क्या ? खुशियों का त्योहार है तो क्या ? चाहे कुछ भी पूछो आप उसका है बस एक जवाब..... वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म....... .🤔🤫🤭 चांद सितारे होंगे अंबर में जब लेना एक न देना दो है नन्हीं नन्हीं खुशियों में जीना मुतमइन है वो, मयस्सर जो है क्या था कल में, कल में है क्या ? सीखो उससे, जीना है क्या ? कल की फिकरों को, कल देखेंगे उसको तो बस, जीना है आज चाहे कुछ भी, पूछो आप उसका है, बस एक जवाब..... वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म....... .🤔🤫🤭 बड़े-बड़े मसले सुलझाती है बिन कुछ बोले, बिन मुंह खोले वो तितली जैसी इतराती है सपनों के, रंग-बिरंगे पर खोलें उसकी दुनिया में जो भी जाए उसी का बस होकर रह जाए संग मुस्काती हंसती गाती, पर चले मर्जी उसकी, उसी का ठाठ चाहे कुछ भी पूछो आप उसका है बस एक जवाब..... वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म........🤔🤫🤭 बिन मद्यसार की मदिरा है वो वो है पैमाना सदाक़त की साथ हो फिर सोगवारी कैसी नज़ीर है वो तो बरकत की होली की रंगत है

यादें

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दो दिन मुद्दतों से लगते हैं, जब भी, तुमसे मुलाकात नहीं होती वैसे तो, ख़्वाब में गुजरती हो, मगर, वो वाली बात नहीं होती तबीयत नासाज़ है मेरी क्यों, कब से, तुम कुछ तो हाल-खबर लो अपनों की परवाह जायज़ है, ये कोई तहक़ीक़ात नहीं होती मैंने लाख छिपाएं हैं गम अपने, अब ये उनकी ज़िम्मेदारी है इधर करें करम उधर जता दें, यूं तो कोई ख़ैरात नहीं होती कितना भी क़हर हो तूफान का, मगर, लहरें बाज कहां आती हैं शाम के बाद सहर ना हो, ऐसी तो कोई भी रात नहीं होती काश तेरी तस्वीर मिल जाए, यूं ही कहीं, दर-ओ-दीवार पर मुझे कम से कम मयस्सर मुझे, फिर, बार-ए-ग़म-ए-हयात नहीं होती मेरी दारू - तेरी दवा, दोनों में ही दर्द काटने का हुनर है तिरी फ़रहत है हंसी मेरी, तिरे फतह से मेरी मात नहीं होती तुम जितने हक से 'ना- ना' कहती हो काश कभी तो 'हां' कह पाती ताब-ए-दर्द उम्दा है मेरा, मगर, 'आह' कभी सौग़ात नहीं होती मेरे गांव की मिट्टी से, खुशबू नहीं, अब धूल उड़ा करती है महज़ तेरे चले जाने से, अब, पहले वाली बरसात नहीं होती ......................................................................... बार-ए-ग़म-ए-हयात =

दरयाफ़्त

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वो खामोश लब से बोलती है, कितना बोलते हो तुम बिन समझे बिन बूझे मुझे, क्यों, खुद से तोलते हो तुम करो दरयाफ़्त गर हो सके, रम्ज़-ए-सर-ए-मिज़गाँ का मेरे क्या बेवजह के मसलों में, मसलन टटोलते हो तुम तुम्हारी बातें बेहतर है और अच्छी भी लगती है तीखा पसंद है मुझे, शायद, नमक-मिर्च घोलते हो तुम बेशक तुम फिकरमंद हो और मेरे लिए मयस्सर भी परवाह जो कोई गैर करे, फिर क्यों जलते हो तुम मैं कितनी भी सज-संवर लूं, इस, आईने की सोहबत में सुकूँ मिले, जब, मिरे दीदार में दरीचे खोलते हो तुम मेरे हर हर्फ़ में, तुम, अपनी खुशियां ढूंढ लेते हो  और इक हल्के ज़र्ब से, कैसे , बच्चों सा बिलखते हो तुम मैं यूं ही नहीं, गहरी नींद की गिरफ्त में रहती हूं शाम-ओ-सहर मेरे ख्वाब में, क्यों टहलते हो तुम मेरे मुकद्दर के मुख़्तसर से मुतासिर, तुम हो ना हो मोम सी पिघलती हूं मैं, जब, आंखें चार करते हो तुम ................................................................................ दरयाफ़्त= तलाश, खोज़ रम्ज़-ए-सर-ए-मिज़गाँ = पलकों पर छिपे रहस्य  मसलन = मिसाल के तौर पर मयस्सर= मौजूद हर्फ़= शब्द ज़र्ब= चोट मुख़्तसर= संक्षिप्त, छोटी कहान

अलविदा

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हर बार महज़" अलविदा "कह देना काफी नहीं होता! गला घोटना पड़ता है उन तमाम यादों का  जो ज़ेहन में ज़न्म ले चुकी होती है। तुम्हारे यूं जुदा हो जाने से हम तन्हा नहीं हो जाएंगे। अब जा रहे हो,तो मेरे इन आंखों में बहते' दरिया 'को भी ले जाओ।  कहीं इनमें उमड़ता सैलाब ,हमारी संजीदगी से संजोयी हुई यादों से तामीर इमारत को ढहा न दे। हां,दरिया के दो किनारे ही सही,मेरी आंखों की पुतलियां । मगर इन पर मील के वह दो पत्थर गड़े हैं, जो सैकड़ों योजन दूर मंजिल को भी सीधे-सीधे ना सही पर टेढ़े-मेढ़े रास्तों से जरूर जोड़ देते हैं। इन राहों पर बिछी उम्मीद की निगाहें हर वक्त तुम्हारी सलामती में सज़दे करेंगी। जहां जैसे भी रहो,बस मुस्कुराते रहना। हसरत,हकीकत  ना हुई तो क्या हुआ! मेरी पलकें अभी भी बंद नहीं हुई हैं। ये खुली हैं,एक मुकम्मल मुलाकात के इंतजार में। ये खुली हैं,उन हसीन यादों को तरोताजा करने के लिए जो चौराहे की तीसरी दुकान पर, गर्म चाय के प्याले से होठों के जल जाने के बाद,एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराया करते थे। हां ये अभी भी खुली हैं,इस इंतजार में कि काश वक्त का