मुखौटा
नकाब ने क्या खूब, हमारी हिफाजत की।
और हमने, फिर भी उसकी तिजारत की।
कभी चेहरा छुपाते, तो कभी हाव-भाव।
रूबरू हुई तो बस, नजर-ए-इनायत की।
मुस्कुराते हम बहुत, अपनी आंखों से ही।
वो मिले भी तो, आंखों से शिकायत की।
करें तो भला क्या? लहराते गेसुओ का।
जिधर उड़े, बस कयामत ही कयामत की।
आओ बैठो, और सुनाओ क्या हाल है?
बस भी करो अब, बू आती है अदावत की।
दिल लुटा, बर्बाद हुए, और न जाने क्या-क्या?
तुम हिज्र में हँसे, चलो इतनी तो रियायत की।
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संजीव शाकिर
Chha gaye guru
ReplyDeleteबस मोहब्बत है भाई जी
DeleteSuperb
ReplyDelete🙏
DeleteTnx Bhai G
ReplyDeleteShandar ...jbardast ...jindabad ....,👌👍👏🤝
ReplyDeleteधन्यवाद
Delete👌👌
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और रुचिकर कविता है आपकी वर्तमान परिदृश्य में पूर्ण दृष्टि से सत्य है।
ReplyDeleteआप लोगों का इश्क है जो रोशनाई से कागज पर उतरता है
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