कोरोना

तुम में और कोरोना में
कोई साठगांठ है शायद,
जहां से भी गुजरते हो
लोग गुजर जाते हैं।

वहां कोरोना की आह में
और यहां तुम्हारी चाह में।
तड़प दोनों में उठती है,
वहां दर्द की कराह में
और यहां इश्क के निबाह में।।

चलो अच्छा तुम ही बताओ
कुछ अपनी आपबीती सुनाओ।
तुम कहती थी मैं ऐसी हूं
किसी के ना जैसी हूं।
फिर ये कैसा कारोबार है
जहां मौत का व्यापार है।
तुम जिसके भी पास होती हो
उसका जीना दुश्वार है।।

तुम दोनों साथी हो या सौत
एक में जीवन, एक में मौत।
यहाँ दिल जंगल में खोना है
वहां चार-दीवारी में सोना है।
यहां हाथों में हाथ, तो जन्नत है
वहां हाथ मिलाकर धोना है।
यहां जेबों में खतों की खुशबू है
वहां सैनिटाइजर ढोना है।
यहां दीदार से दिन कट जाता है
वहां नकाबपोश होना है।।

जब सब है बेहतर, फिर दिल क्यों टूटा
क्या दिल नहीं ये खिलौना है ?
कुछ तो सोचो, कुछ कहने के पहले
अपने,अपने होते हैं इन्हें, कभी न खोना है।।

जरा गौर से सुनो कोरोना
बेहतर है तुम वापस जाओ।
चीनी चखने का क्या भरोसा
आज मीठा कल खट्टा लग जाओ।।

देश हमारा हिंदुस्तां है
बसता, इसमें सारा जहां है
तुम्हारी इसमें कोई जगह ना
हर दिल अल्लाह, राम जुबां है।।

संजीव शाकिर
केनरा बैंक, छपरा।।
संजीव शाकिर



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