धक~धक

सुर्ख गाल, मदमस्त निगाहें
बहकी चाल, ये शोख अदाएं

रहते हैं ये सब, अपने ही मद में
है मजा ही किया, बंध जाएं जो हद में


ना जाने तुम पे, इल्जामात ये कितने
हुए रूबरू जितने, कत्ल हैं उतने

है तुमसे मेरी, बस ये इल्तिजा
अब करो रहम, दो मुझको सजा


बन हिरनी विचरों, हृदय उपवन को
मार दो मेरे,अंतर्मन के रावण को.....

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संजीव शाकिर

केनरा बैंक, तेलपा छपरा

संजीव शाकिर



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SANJEEV SHAAKIR

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