धक~धक
सुर्ख गाल, मदमस्त निगाहें
बहकी चाल, ये शोख अदाएंरहते हैं ये सब, अपने ही मद में
है मजा ही किया, बंध जाएं जो हद में
ना जाने तुम पे, इल्जामात ये कितने
हुए रूबरू जितने, कत्ल हैं उतने
है तुमसे मेरी, बस ये इल्तिजा
अब करो रहम, दो मुझको सजा
बन हिरनी विचरों, हृदय उपवन को
मार दो मेरे,अंतर्मन के रावण को.....
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संजीव शाकिर
केनरा बैंक, तेलपा छपरा
संजीव शाकिर |
Bahot bahot badhiyaa Sanjeev ji. Maardo untarmanke Raavan ko. Kya baat kahi aapne..
ReplyDelete🙏
DeleteBahut khoob
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteलाजवाब
ReplyDelete🙏
Deleteबहुत खूब सर अंतर्मन की रावण को मार दो। जबरदस्त लाईन।
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