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Showing posts from September, 2020

'"राब्ता'"

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अच्छा खासा तो हूं,फिर क्यों,लोग बीमार समझते हैं। जो कुछ नहीं समझते,खुद को रिश्तेदार समझते हैं।। किसी और नाम पर, हमनें अपनी उधारी मांग ली। और,वो आज भी हमें, अपना कर्जदार समझते हैं।। मैं मिलूं,कितने भी तपाक से,मगर यह कामिल कहां। वो,मेरे मुकद्दस इश्क को, मेरा व्यापार समझते हैं।। मैं जख्म कुरेदता रहता हूं, खुद के नाखूनों से ही। उन्हें,ये इल्म ही कहां,जो,मुझे लंबरदार समझते हैं।। उनकी बातें न जाने क्यों,ज़ेहन में जिंदा रहती हैं। कब्र तक ना छोड़ेंगें,मुझे,जो हिस्सेदार समझते हैं।। तमाम शब"सो"ना सके,बाबा,ख़ासि़यों की कराह से। बैठा कर चौखट पर,"बेटे" चौकीदार समझते  हैं।। चलो अब दफन करते हैं,गिले-शिकवे,हैं जो दरमियां। यह बात,सब नहीं समझते,बस जिम्मेदार समझते हैं।। साहिल ने लहरों से,बस यूं ही नहीं,गुफ़्तगू कर ली। जो इश्क में गोते खाते हैं,वही मँझधार समझते हैं ।। सुनो,ये खबर रहे कि,तुम भी मेरे दिल के सनम हो। पत्तों के झड़जाने का गम,दरख़्त,शाख़दार समझते हैं।। गुरबत की बदहाली से,तुझे अब,जीतना है"शाकिर"। जंग लड़े कैसे,लकीरों से,बस'दो-चार'समझते हैं।। ................

नोक-झोंक

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👦    चलो डूब मरते हैं, इश्क के समंदर में।                                           👧    तुम मरो ना, मर जाऊंगी तेरे अंदर मैं।। 👦   ये तो कोई बात नहीं,         जो वादा किया वो साथ नहीं।         तुम ना कहती थी तुम बड़े सच्चे हो,         हां चेहरे से थोड़ा कम पर दिल के अच्छे हो।।         सारी बातें भूल गई,          कमाल है।         जिसे समझता था मैं जवाब         वह खुद, इक सवाल है।। 👧   हे, रुको रुको !         ज्यादा नहीं, हां।।         तुम्हें कुछ याद भी रहता है,         मैंने ऐसा कब बोला है।         आंखों में रहने की जगह दी है,         अभी दिल नहीं खोला है।।         हंस के दो बातें क्या कर ली,         इश्क समझ बैठे।         यही मसला तुम सारे लड़कों का है,         लड़की देखी नहीं, चालू हो गए।         आगाज-ए-इश्क में समुंदर के रेत जैसे हैं         अंजाम-ए-मोहब्बत में,         अवैध खनन के बालू हो गए।। 👦    ओ-ह-हो, तो तुम्हें याद नहीं।          खैर छोड़ो, कोई बात नहीं।।          पिज्जा हट तो याद होगा,          जहां हम-तुम बैठा करते थे।          घंटों एक-दूजे संग "वक्त"      

तुम्हें अच्छा लगेगा !

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चलो अब इश्क करते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा बेवजह तुम पर मरते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा तेरी तारीफ के कसीदे, मैं  पढूं  ना  पढूं सुकूँ से कलाम पढ़ते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा जज़्बात ख़यालात सवालात, अब रहने भी दें बिन बयां सब समझते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा वो रुमाल जो अपने सर की, तकिया थी कभी उसकी खुशबू महकते हैं, तुम्हें  अच्छा  लगेगा मयस्सर हो जहां से जो, उतना ही सिर्फ क्यों? अब हक के लिए लड़ते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा मैं तुम या फिर हम, जीत लेंगे इस दुनिया को क्यों ना साथ में निकलते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा तीरगी-ए-शब में खूब चमके, इश्क के जुगनू शाम-ओ-सहर चमकते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा हाल-ए-दिल दफन है दिल में, ना जाने कब से आंखों से बयां करते हैं,  तुम्हें  अच्छा  लगेगा गली के नुक्कड़ से बहुत हुई, हुस्न की टकटकी "आ" चौराहे पर मिलते हैं, तुम्हें अच्छा लगेगा तुम हो इंतजार में जिसके, वो शाकिर तो नहीं तुम रुको हम चलते हैं,  तुम्हें  अच्छा  लगेगा ...........................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   ..