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Showing posts from May, 2020

मजदूर~गाथा

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        दू   "मज - र"गाथा     बू खुद के लहू से सींच कर  जो सड़के बनाई थी हमने। अपने घरों से खींच कर ला खड़ा किया वहीं तुमने। रंग-रूप चकाचौंध शहर का हाथी दांत के जैसा है। जहां जिंदे को रोटी नसीब,ना और लाश हुए,तो पैसा है। लाखों लोग जो बेघर हैं, राहों में हैं भटक रहे। शासन और प्रशासन की  आंखों में हैं खटक रहे। राष्ट्र का गौरव इनसे ही है, रहेगा, इन्हीं के कर्मों से। नेता के राज और उनकी नीति ने सौगात दिया इन्हें जुर्मो से। रहे स्मरण, इन रणबांकुरे ने कोरोना को भी मात दिया। भूख प्यास और घोर गरीबी ने हाय! चौतरफा कुघात किया। अब ना कोई उम्मीद है, अब ना किसी से आस है। तुम जलाओ दीपक घरों में यहां जलती हमारी सांस है। पैर के छालों ने जो नापा  वह दूरी नहीं मजबूरी है। गांव की गलियां गूंज रही हैं  तेरा जिंदा रहना जरूरी है। दाएं कंधे पर बेटा बैठा बायें पर बेटी का भार है। अब हर पग, मां खून थूकती बीवी को तेज बुखार है। इस चिलमिलाती धूप को  मेरा नंगा बदन ही काफी है। सैकड़ों योजन चलकर भी,  मेरे बच्चे में जान बाकी है। ये मर गया तो, तड़पूंगा मैं क्योंकि मेरा तो कुछ जाता है। हिंदुस्तान समूचा झुलस रहा

दास्तान-ए-दिल

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खो गए क्या? जैसे बारिश की बूंद समंदर में खोती है। या फिर सो गए क्या? जैसे नन्ही बच्ची मां की गोदी में सोती है।। खैर छोड़ो, अब इतनी भी फिक्र, क्या करना। जो लौटे ही ना, उसका ज्यादा जिक्र, क्या करना।। तेरी बहकी-बहकी बातें  अब भी याद आती हैं। वो भीनी-भीनी सी मुलाकातें  मुझे बहुत तड़पाती है।। वो तेरा पास बैठकर  कोहनी मारना। जोर की लगने पर  प्यार से पुचकारना।। चार कदम चलते ही, तेरा ऑटो को हाथ देना। भैया ज्यादा दूर नहीं, बस पीवीआर पर रोक लेना।। ऑटो से उतरते ही  तेरा पानी पुरी खाना। ये क्या भैया, सादा-सादा  जरा तीखा और मिलाना।। एक कड़क गोलगप्पा, मेरे होठों के पास लाना। मेरे "अ-आ" करते ही झट से गप कर जाना।। हां सब याद है मुझे, पर क्या तुम्हें भी? बैठती थी मेरी गोद में, और देखती थी उसे भी।। आखिर क्या मिला तुझे, मुझे बर्बाद करके। हां मैं तड़पा बहुत मगर, तुझे याद करके।। और तेरा क्या हुआ? अरे ओ जानेमन। क्या हुई तू आबाद?  खुद को आजाद करके।। जो मेरा हो न सका, वो तेरा क्या होगा? तू भी तड़पेगा एक दिन, तब यह फैसला होगा।। हां, ये मैंने ही कहा था उससे  तू पास जिसके भी गई थी। वो बंदा रिस्तों का ब

संस्कृति में निहित समाज की सभ्यता

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-:पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण:- प्रस्तावना एवं परिचय:- तो क्या, ये महज एक इत्तेफाक है?  जहां संपूर्ण जगत में अपने नैतिक मूल्यों एवं वसुधैव ही कुटुंबकम् जैसी सूक्तियां के समावेश से अपना वर्चस्व कायम कर आसमान की ऊंचाइयों को छूने वाली भारतीय सभ्यता का परचम आज पाश्चात्य सभ्यता की हल्की हवा के नाजुक थपेड़ों से भी लड़खड़ा जाता है। सप्तर्षियों की ये तपोभूमि जिसे एक तरफ व्यास, पतंजलि, बृहस्पति, जैमिनी जैसे महर्षियों ने अपने मनीषा के ओज से इसे प्रकाशमय किया, वहीं दूसरी तरफ कबीर, मीरा, रैदास, ने भारतीय संस्कृति की सुंदरता को अपने दोहे में पिरो कर समाज को एक नया आईना दिया। सरस्वती नदी के तट पर संकलित ऋग्वेद भाषा वैज्ञानिकी, दार्शनिक दृष्टिकोण, राजनीतिक चेतना, आर्थिक सद्भाव, एवं समाज में स्त्रियों के महत्व को दर्शाने वाला विश्व का प्राचीनतम (सर्वप्रथम) धर्म ग्रंथ है जो भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। दृष्टांत प्रमाण:- आविष्कार जगत की जननी कहा जाने वाला भारत, शून्य और दशमलव से लेकर शल्य चिकित्सा, आयुर्वेद चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी, फाइबर ऑप्टिक्स, ज्यामिति, पाई का सिद्धांत