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अंदाज़-ए-बयाँ

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अंदाज़-ए-बयाँ सब कुछ लगा कर दाँव पर, हम ऐसे चाल हार गए अब क्या बरछी क्या कटार, वो जुबां से ही मार गए जीतने की ख़्वाहिश तो थी ही नहीं, कभी भी उनसे रंजिशें ग़ैरों  से की  और  अपने  सारे  यार गए इक फर्क है  मेरे और उनके  अंदाज़-ए-बयाँ में वो अब भी  इक राज हैं, मेरे सारे असरार गए तूफानों ने लहरों से  मिल कर ऐसी साज़िश रची कश्ती तिरे ख़ैर में  ना जाने कितने  पतवार गए अमूमन, तमाम शब मैं  इसी क़ैफ़ियत में रहता हूं बेज़ार हो क्यों? मिरे किस बात पर इतना ख़ार गए तुम्हारा यूं  हौले से  रुख़सत हो जाना  जायज़ है तुम्हें  ख़बर भी है, यहां  मेरे कितने  इतवार गए ................................................................................................... संजीव शाकिर केनरा बैंक, छपरा ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   YOUTUBE- https://youtu.be/vLT-KbE83os ....................................................................✍️

मरासिम

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संजीव शाकिर न जाने कैसा है दर्द उसे, न जाने कैसी कराह है ख़ामोश बेशक है वो मगर, ये कारी रात गवाह है तेरे बदन से नहीं, तेरी रूह से है, ताल्लुक़ मेरा हाँ,तड़पता मैं भी हूं,तेरी जब भी निकलती आह है बेचैन हो उठता है दिल,तू जब भी मुब्तिला हो कहीं सुकूँ मिलता है ग़ालिबन,मिलती जब भी तुझे पनाह है महफ़ूज़ रहें तेरे अपने,मुक़म्मल हो हर ख़्वाब तेरा बस इतनी सी इल्तिजा है मेरी,इतनी ही परवाह है सुनो,अब छोड़ो ये सब,आओ उठो,चलो घर चलते हैं  दीया चौखट पर रखे,"मां" बस तकती हमारी राह है