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Showing posts from March, 2020

कोरोना

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तुम में और कोरोना में कोई साठगांठ है शायद, जहां से भी गुजरते हो लोग गुजर जाते हैं। वहां कोरोना की आह में और यहां तुम्हारी चाह में। तड़प दोनों में उठती है, वहां दर्द की कराह में और यहां इश्क के निबाह में।। चलो अच्छा तुम ही बताओ कुछ अपनी आपबीती सुनाओ। तुम कहती थी मैं ऐसी हूं किसी के ना जैसी हूं। फिर ये कैसा कारोबार है जहां मौत का व्यापार है। तुम जिसके भी पास होती हो उसका जीना दुश्वार है।। तुम दोनों साथी हो या सौत एक में जीवन, एक में मौत। यहाँ दिल जंगल में खोना है वहां चार-दीवारी में सोना है। यहां हाथों में हाथ, तो जन्नत है वहां हाथ मिलाकर धोना है। यहां जेबों में खतों की खुशबू है वहां सैनिटाइजर ढोना है। यहां दीदार से दिन कट जाता है वहां नकाबपोश होना है।। जब सब है बेहतर, फिर दिल क्यों टूटा क्या दिल नहीं ये खिलौना है ? कुछ तो सोचो, कुछ कहने के पहले अपने,अपने होते हैं इन्हें, कभी न खोना है।। जरा गौर से सुनो कोरोना बेहतर है तुम वापस जाओ। चीनी चखने का क्या भरोसा आज मीठा कल खट्टा लग जाओ।। देश हमारा हिंदुस्तां है बसता, इसमें सारा जहां है तुम्हारी इसमें क

'स्त्री'

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                      'स्त्री'                 शाश्वत सत्य तुम इस जगत का मान हो संपूर्ण सृष्टि का सम्मान हो, तुम हो दृष्टांत हर क्षेत्र में तुम अभिव्यक्ति हो, अभिमान हो। तुम मेरा संसार हो तुम ही मेरा घर द्वार हो, तुम से है, अस्तित्व मेरा तुम प्यार हो, परिवार हो। तुम करुणा की जननी हो तुम हो ममता की मूरत, हर भाव तुम्हारा अगोचर है प्रत्यक्ष के परोक्ष में, छिपी है ऐसी सूरत। अनदेखा अंजाना कितना भी कर ले कोई, तुम दिल पर दस्तक देती हो बनकर एक जरूरत।। बहन बनकर तुम सिखाती हो आचरण, कौन विसर सकता है जीवन का वो चरण। हमदम बनकर जब घर में करती हो आगमन, बच्चे-बड़े-बूढ़े सब होते हैं मगन।। तुम मां हो तुम दुआ हो, उम्र कितनी भी हो तुम्हारी हर दिल में तुम जवां हो। नन्ही सी कली तुम गोद में पली उड़ती तुम गगन में जैसे कोई हवा हो।। कानों से जो दिल में उतरती तुम वो तोतली जुबां हो। तुम हो जीवन की उपलब्धि तुम माहौल खुशनुमां हो।। संजीव शाकिर केनरा बैंक, तेलपा छपरा संजीव शाकिर