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अनकही

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~अनकही~ तेरे चेहरे से ये जो नूर निकलते हैं जैसे तीरगी-ए-शब में जुगनू जलते हैं हम भी, एक अजीब अदाकार, बन बैठे हैं हर शख़्स से अब, नए किरदार में मिलते हैं लड़खड़ाते हैं मिरे ये पांव, हर पल, हर पग पग-पग पर, लड़खड़ा के, ख़ुद ही सभलते हैं तेरी ख़्वाहिश ही ना थी, हमें कभी भी, मगर तेरे ख़्वाब में, हम यूं, करवटें बदलते हैं बेशक थे जान, हम भी कभी, पत्थर के सनम  ये तो आज है, की हम मोम सा पिघलते हैं ताउम्र सच बोलने की कसमें खाते थे, जो अब वही एक-दूसरे से झूठ बोलते हैं संजीव शाकिर ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   YOUTUBE- https://youtu.be/vLT-KbE83os ....................................................................✍️