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Showing posts from November, 2020

सियासत

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सियासी महकमे से उड़ती ख़बर है  जवां महफ़िलो पर अब पैनी नज़र है  यूं तो मजलिस लगी वोट के नाम पर  अब तो मुलाकात भी क़तई ज़हर है  गुफ्तगू  जो  भी  थी  सरेआम हो गई अब कहां,किसे,कुछ भी खोने का डर है  गांव की गलियां तक रफू हो रही थी  यहां  चौराहे  से  घूरता  शहर  है कौन करे उंगली सियासतदानों को हैं जो काबिल उनका अपना घर है  इब्तिदा-ए-इश्क़ की इंतिहा हो गई जो ख़ुद के ना हुए मेरे हमसफ़र हैं गरेबाँ झाँकूं जरा भी हुकूमत का  कालिख ढकती एक सफेद चादर है  हैरत में है "माचिस" देखकर शहर को जब जुबाँ से निकलती आग की लहर है  लाचार लहजे ने लाजवाब कर दिया वादे अच्छे थे फिर यह कैसा कहर हैं वो वहां बैठे तुम्हें देख रहे "शाकिर" अंजान बने रहना दस्तूर-ए-दहर है …...................................................🖋️ संजीव शाकिर केनरा बैंक, छपरा …...................................................🖋️ ....................................................................✍️ INSTAGRAM- http://www.instagram.com/sanjeev_shaakir FACEBOOK-  http://www.facebook.com/sanjeevshaakir   YOUTUBE- https://youtu.b

हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म.......

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वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म....... .🤔🤫🤭 दुनिया की चाहे लगी हो वाट हर शय की अपनी खड़ी हो खाट तकलीफों का अंबार है तो क्या ? खुशियों का त्योहार है तो क्या ? चाहे कुछ भी पूछो आप उसका है बस एक जवाब..... वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म....... .🤔🤫🤭 चांद सितारे होंगे अंबर में जब लेना एक न देना दो है नन्हीं नन्हीं खुशियों में जीना मुतमइन है वो, मयस्सर जो है क्या था कल में, कल में है क्या ? सीखो उससे, जीना है क्या ? कल की फिकरों को, कल देखेंगे उसको तो बस, जीना है आज चाहे कुछ भी, पूछो आप उसका है, बस एक जवाब..... वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म....... .🤔🤫🤭 बड़े-बड़े मसले सुलझाती है बिन कुछ बोले, बिन मुंह खोले वो तितली जैसी इतराती है सपनों के, रंग-बिरंगे पर खोलें उसकी दुनिया में जो भी जाए उसी का बस होकर रह जाए संग मुस्काती हंसती गाती, पर चले मर्जी उसकी, उसी का ठाठ चाहे कुछ भी पूछो आप उसका है बस एक जवाब..... वो कहती है, हूं ऊ ऊ ऊ उ उ उ म म म म म........🤔🤫🤭 बिन मद्यसार की मदिरा है वो वो है पैमाना सदाक़त की साथ हो फिर सोगवारी कैसी नज़ीर है वो तो बरकत की होली की रंगत है

यादें

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दो दिन मुद्दतों से लगते हैं, जब भी, तुमसे मुलाकात नहीं होती वैसे तो, ख़्वाब में गुजरती हो, मगर, वो वाली बात नहीं होती तबीयत नासाज़ है मेरी क्यों, कब से, तुम कुछ तो हाल-खबर लो अपनों की परवाह जायज़ है, ये कोई तहक़ीक़ात नहीं होती मैंने लाख छिपाएं हैं गम अपने, अब ये उनकी ज़िम्मेदारी है इधर करें करम उधर जता दें, यूं तो कोई ख़ैरात नहीं होती कितना भी क़हर हो तूफान का, मगर, लहरें बाज कहां आती हैं शाम के बाद सहर ना हो, ऐसी तो कोई भी रात नहीं होती काश तेरी तस्वीर मिल जाए, यूं ही कहीं, दर-ओ-दीवार पर मुझे कम से कम मयस्सर मुझे, फिर, बार-ए-ग़म-ए-हयात नहीं होती मेरी दारू - तेरी दवा, दोनों में ही दर्द काटने का हुनर है तिरी फ़रहत है हंसी मेरी, तिरे फतह से मेरी मात नहीं होती तुम जितने हक से 'ना- ना' कहती हो काश कभी तो 'हां' कह पाती ताब-ए-दर्द उम्दा है मेरा, मगर, 'आह' कभी सौग़ात नहीं होती मेरे गांव की मिट्टी से, खुशबू नहीं, अब धूल उड़ा करती है महज़ तेरे चले जाने से, अब, पहले वाली बरसात नहीं होती ......................................................................... बार-ए-ग़म-ए-हयात =